The Train... beings death 29
कमल नारायण के कहे अनुसार सारी सामग्रियों और पूजा सामान की तैयारी इंस्पेक्टर कदंब और नीरज ने जल्दी ही पूरी कर ली थी। अगले दिन सुबह-सुबह इंस्पेक्टर कदंब और नीरज कमल नारायण को लेने हॉस्पिटल पहुंच गए थे और डॉक्टर से सारी बातें करने के बाद कमल नारायण को लेकर हॉस्पिटल से निकल गए थे।
हॉस्पिटल से बाहर निकलकर सभी जीप में बैठ गए। जैसे ही कमल नारायण जी जीप में बैठे उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली। उन्हें आंखें बंद करते देख इंस्पेक्टर कदंब थोड़ा सा घबरा गए थे। उन्होंने तुरंत पूछा, "क्या हुआ कमल नारायण जी..? तबीयत तो ठीक है ना आपकी? अगर कोई दिक्कत है तो हम वापस अंदर चले!"
कमल नारायण ने शांति से कहा, "नहीं..! कोई दिक्कत नहीं है। पहले के भवानीपुर और अब के इस नये भवानीपुर में बहुत ही ज्यादा अंतर आ गया है। उस जगह तक पहुंचने के लिए हमें ध्यान लगाना होगा। वहां की तरंगे पकड़ कर ही हम वहां तक पहुंच सकते हैं।"
नीरज को कमल नारायण जी की बातें समझ में नहीं आई थी। नीरज ने कन्फ्यूजन से इंस्पेक्टर कदंब की तरफ देखा तो इंस्पेक्टर कदंब ने अपने कंधे नासमझी से उठा दिए। तब नीरज ने कमल नारायण जी से पूछा, "हम समझे नहीं.. आप क्या कहना चाह रहे हैं?"
कमल नारायण जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "वह क्या कहते हैं.. आप लोग.. नेविगेशन..! हमें उस प्रॉपर जगह पर पहुंचने के लिए नेविगेशन चाहिए। बीते 60 सालों में यहां पर बहुत कुछ चेंजेज आ गए हैं। एग्जैक्ट जगह कौन सी है? वह मुझे भी नहीं पता। इसीलिए मैं बस नेविगेशन यूज कर रहा हूं।"
"कैसे.. मतलब..?" नीरज ने कन्फ्यूजन से पूछा।
"वह ऐसे कि.. जहां पर तंत्र प्रयोग किया गया था वहां से कुछ स्पेशल वेव्स निकलती हैं। मुझे बस उन वेव्स को कैच करके उस जगह तक पहुंचना है। सिंपल..!" कमल नारायण ने आज की भाषा में समझाते हुए कहा।
"ओह..! ऐसा है..!" नीरज को अब बात समझ में आ गई थी।
कमल नारायण जी की बात पूरी होते ही नीरज ने जीप आगे बढ़ा दी। पूरे रास्ते कमल नारायण जी अपनी आंखें बंद किए हुए ध्यान मुद्रा में बैठे थे। हर एक मोड़ पर वह अपने निर्देश देते जा रहे थे। कमल नारायण जी की बताई डायरेक्शन के हिसाब से नीरज गाड़ी चला रहा था।
अचानक से कमल नारायण जी चिल्लाए, "गाड़ी रोको..!"
कमल नारायण जी के ऐसे अचानक चीखने से नीरज ने तुरंत ही इमरजेंसी ब्रेक मारा.. जिससे गाड़ी जोर से चीख उठी और अपनी जगह की जगह रुक गई। जीप के रुकते ही नीरज ने घबराकर पीछे देखा और कमल नारायण जी से पूछा, "क्या हुआ..? आप एकदम से चीखे सब कुछ ठीक है ना??"
"अं...हां..! ठीक है!" कमल नारायण जी ने एक घबराहट भरे स्वर में कहा।
"आप झूठ बोल रहे हैं ना.. आपको देखकर तो नहीं लगता कि सब कुछ ठीक है।" इंस्पेक्टर कदंब ने पूछा।
कमल नारायण जी ने घबराते हुए कहा, "हमें वहां जाने का विचार छोड़ना होगा।"
यह सुनते ही इंस्पेक्टर कदंब और नीरज चौक गए और नासमझी से दूसरे की तरफ देखते हुए पूछा, "कहना क्या चाह रहे हैं आप? आपको तो पता ही है आजकल शहर में क्या हो रहा है? उसके बावजूद भी आप यह कह रहे हैं कि हमें वहां जाने का विचार छोड़ना होगा??"
कमल नारायण जी ने हां में अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा, "हां..! मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं। वह जो भी कुछ है.. उसे शायद हमारे बारे में पता चल गया है और वह नहीं चाहता कि हम वहां पहुंचे। इसीलिए वहां जाने के रास्ते में काफी रुकावटें और किसी तीव्र नकारात्मक शक्ति का आभास हो रहा है।"
"इसका मतलब है कि अब कुछ भी नहीं हो सकता??" नीरज ने निराश होते हुए कहा।
"नहीं मैं आशा करता हूं कि ऐसा ना हो। हम किसी दूसरे रास्ते से वहां पर पहुंचने की कोशिश करते हैं। अगर वहां पर पहुंच जाते हैं तो ठीक है और अगर नहीं पहुंच पाते तो फिर कुछ और सोचना होगा।" कमल नारायण जी ने कहा।
"लेकिन.. किसी और दूसरे रास्ते से कैसे ..?" नीरज ने कन्फ्यूजन से पूछा।
तो कमल नारायण जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,
"मैं कोशिश करता हूं.. शायद कोई और दूसरा रास्ता मिल जाए वहां तक पहुंचने का।" इतना कहकर कमल नारायण जी ने अपनी आंखें बंद कर ली और फिर कुछ देर बाद आंखें बंद किए किए कहा, "गाड़ी यू टर्न करो.. और फिर सीधे चलो!"
कमल नारायण जी के इतना कहते ही नीरज ने इंस्पेक्टर कदंब की तरफ देखा तो कदंब ने भी अपनी गर्दन हां मे हिलाकर इशारा किया। इंस्पेक्टर कदंब की सहमति मिलते ही नीरज ने गाड़ी स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी।
यू टर्न मारने के बाद जैसे ही गाड़ी थोड़ी दूर आगे गई कमल नारायण जी ने कहा, "लेफ्ट लो..!" नीरज ने कमल नारायण जी के कहे हिसाब से गाड़ी लेफ्ट मोड़ दी। उसके बाद कुछ दूर जाने के बाद फिर से कमल नारायण जी ने कहा, "फर्स्ट लेफ्ट के बाद स्ट्रेट जाना है!"
कमल नारायण जी के बताए हिसाब से नीरज गाड़ी चलाए जा रहा था। अब तक वह लोग शहर से काफी दूर आ चुके थे। नीरज को समझ में नहीं आ रहा था कि कमल नारायण जी आखिर उन्हें कहां ले जाना चाहते थे? लेकिन इस वक्त कमल नारायण जी की बात मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था। इसीलिए जैसे जैसे कमल नारायण जी कहते जा रहे थे.. नीरज गाड़ी चलाते जा रहा था।
लगभग डेढ़ घंटे गाड़ी ड्राइव करने के बाद वह लोग एक जगह जाकर रुके। वह जगह शहर से सीधे आने पर लगभग आधे घंटे ही दूर थी.. लेकिन कमल नारायण जी की बात मानते हुए उस जगह पहुंचने में 2 घंटे से भी ज्यादा का समय लगा था। वहां पर पहुंचते ही कमल नारायण जी ने कहा, "बस यही रोक दो..! इसके बाद हमें कुछ दूर पैदल चलना होगा!!"
कमल नारायण जी की बात मानते हुए नीरज ने गाड़ी वहीं साइड में पार्क कर दी और सारा सामान जो कमल नारायण जी ने बताया था उसे उतार लिया। कुछ दूर पैदल चलने के बाद वो लोग एक जंगल जैसे दिखने वाले मैदान में पहुंचे जिसके चारों ओर जहां तक दिखाई दे रहा था पेड़ ही पेड़ नज़र आ रहे थे। भवानीपुर में जहाँ बहुत ज्यादा डेवलपमेंट हो चुका था ये जगह अभी भी अनछुई ही रह गई थी। वहां पर अभी भी काफी इलाका खाली पड़ा हुआ दिखाई दे रहा था। वहां पर बस पेड़ पौधे लगे हुए थे। बहुत ही बड़े, छायादार और इतने घने के बहुत ही ज्यादा डरावने दिखाई दे रहे थे। दिन के बारह बज रहे थे और अभी भी वहाँ देखकर ऐसा लग रहा था कि सूर्य उदय ही नहीं हुआ था।
जहाँ इस समय वो सभी लोग खड़े थे वहां से लगभग आधा किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन था। नीरज को जैसे ही इस बात का अंदाजा हुआ कि वह लोग रेलवे स्टेशन के पास थे.. तो नीरज थोड़ा घबराया हुआ दिखा और कमल नारायण जी से पूछा, "हम... हम यहां पर... आपको लगता है यह वही जगह है??"
कमल नारायण जी ने हां में अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा, "बिल्कुल..! हम बिल्कुल सही जगह आए हैं। अब इसके आगे तुम्हारे जो भी सवाल हैं.. वह तुम बचा के रखो.. बाद में पूछना। क्योंकि जल्दी ही मुहूर्त खत्म हो जाएगा और उस मुहूर्त के बाद हमारे पूजा पाठ का कोई भी असर नहीं होगा या हो सकता है आयाम द्वार की तरह कुछ उल्टा ही हो जाए।"
कमल नारायण जी की चेतावनी सुनने के बाद नीरज चुपचाप खड़ा हो गया। इंस्पेक्टर कदंब भी पास में ही चुपचाप खड़े कमल नारायण जी को ही देख रहे थे। कमल नारायण जी ने नीरज से सारा सामान अपने पास लाकर रखने के लिए कहा। नीरज ने बिना कुछ सवाल किए कमल नारायण जी का मंगाया हुआ सारा सामान वही रख दिया और एक तरफ जाकर खड़ा हो गया।
कमल नारायण जी ने सारे सामान को एक बार चेक किया और फिर जल्दी से हाथ चलाते हुए कुछ यंत्रों का निर्माण आरंभ कर दिया। हल्दी, रोली, चंदन, गुलाल, आटा.. सभी चीजों का प्रयोग करते हुए कमल नारायण जी कुछ षटकोणीय, कुछ त्रिभुजाकार और कुछ अष्टदल कमल जैसे यंत्र बना रहे थे। उन्होंने एक बड़ा सा कमल दल जैसा यंत्र बनाया और उसके पास में एक त्रिकोणीय हवन कुंड बना दिया और सारी पूजन सामग्री आसपास ही व्यवस्थित कर दी। इस काम में उन्हें लगभग आधा घंटा लगा होगा। तब तक इंस्पेक्टर कदंब और नीरज बिना कुछ कहे चुपचाप कमल नारायण जी को ही देख रहे थे।
सारा काम पूरा होते ही कमल नारायण जी ने कहा, "इंस्पेक्टर..! आप दोनों इस बड़े से अष्टदल कमल यंत्र में बैठ जाइए और जब तक मैं ना कहूं किसी भी परिस्थिति में इस यंत्र से बाहर मत निकलना। चाहे इस बीच मेरी मृत्यु हुई क्यों ना हो जाए या फिर आपके किसी प्रियजन की आपकी आंखों के सामने मौत हो जाए। किसी भी परिस्थिति में आप लोग इस यंत्र से बाहर नहीं निकलेंगे.. जब तक कि अनुष्ठान पूरा ना हो जाए।"
इंस्पेक्टर कदंब कुछ पूछने वाले थे कि कमल नारायण जी ने हाथ से इशारा कर रोकते हुए कहा, "इस समय मैं आपके किसी भी सवाल का जवाब देने की स्थिति में नहीं हूं। मेरी गणना के अनुसार मेरे पास केवल 5 मिनट का टाइम है.. इस अनुष्ठान को शुरू करने में। उसके बाद शुभ मुहूर्त बीत जाएगा और राहुकाल आरंभ हो जाएगा। राहु काल में किसी भी तरह के शुभ कार्य करना वर्जित होता है इसीलिए आपके सारे सवालों का जवाब मैं अनुष्ठान के बाद दूंगा।"
कमल नारायण जी की बात सुनते ही इंस्पेक्टर कदंब और नीरज दोनों ही चुपचाप उसी यंत्र में जाकर बैठ गए। उनके यंत्र में बैठते ही कमल नारायण जी भी अपनी जगह जाकर बैठ गए और उन्होंने मंत्र जाप आरंभ कर दिया। हर मंत्र के साथ वह हवन कुंड में आहुतियां देते जा रहे थे। लगभग 1 घंटे तक हवन चला.. उसके बाद जैसे ही अनुष्ठान पूर्णता की ओर जा रहा था वहां के माहौल में एक अजीब सी बोझिलता फैलती जा रही थी। इंस्पेक्टर कदंब और नीरज को अजीब सी बेचैनी महसूस होने लगी थी। दोनों का मन कर रहा था कि वहां से उठकर चले जाएं लेकिन कमल नारायण जी की चेतावनी याद आते ही वह दोनों चुपचाप वहीं पर बैठ गए और कमल नारायण जी द्वारा किये जाने वाले अनुष्ठान के पूरे होने का इंतजार करने लगे। धीरे-धीरे माहौल में भारीपन बढ़ता ही जा रहा था।
कमल नारायण जी भी बिना विचलित हुए अपने मंत्र जाप और आहुतियां देने में लगे हुए थे। और यही क्रम लगभग 15 मिनट चला उस के बाद माहौल में अजीब सी शांति फैल गई। वहां पर एक अलग सी ठंडक और गंध का एहसास होने लगा था। जैसे ही माहौल बदला कमल नारायण जी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई थी।
उस मुस्कान का कारण इंस्पेक्टर कदंब और नीरज को समझ में नहीं आया.. पर जैसे जैसे समय बीत रहा था कमल नारायण जी के चेहरे की मुस्कान गहरी होती जा रही थी और 10 मिनट के बाद कमल नारायण जी ने आखिरी आहुति दी और यज्ञ वेदी को नमस्कार किया। कमल नारायण जी के ऐसा करते ही इंस्पेक्टर कदंब को समझ में आ गया था कि अनुष्ठान पूरा हो चुका था। जैसे ही वह उठने वाला था.. कमल नारायण जी ने आंखें बंद किए हुए ही हाथ से इशारा करते हुए उन्हें रोक दिया।
कमल नारायण जी के रोकते ही इंस्पेक्टर कदंब जिस भी हालत में थे वैसे के वैसे ही वापस बैठ गए। तभी कमल नारायण जी की आवाज आई, "आओ..! बहुत दिनों के बाद तुमसे भेंट हो पाई है।"
कमल नारायण जी की आवाज सुनते इंस्पेक्टर कदंब और नीरज कन्फ्यूजन से यहां वहां देख रहे थे। उन्हें वहां कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वहां पर केवल कमल नारायण जी की आवाज आ रही थी लेकिन कमल नारायण जी के बोलने के लहजे से ऐसा लग रहा था कि वहां और भी कोई था.. जिसे देखकर कमल नारायण जी बातें कर रहे थे। दूसरे व्यक्ति की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी.. ना ही वह दिखाई दे रहा था। कमल नारायण जी के हाव भाव और बातचीत के लहजे से ऐसा लग रहा था कि सामने कोई था.. जिससे कमल नारायण जी पहले से परिचित थे और बातें कर रहे थे।
कमल नारायण जी ने आगे कहा, "हमें आपकी सहायता की आवश्यकता है।"
सामने वाले व्यक्ति ने कुछ कहा जो कदंब और नीरज को सुनाई नहीं पड़ा लेकिन उसके बाद काफी देर तक कमल नारायण जी कुछ कहते रहे और सामने वाला व्यक्ति जवाब देता रहा। अभी तक जो भी बातें चल रही थी वह इंस्पेक्टर कदंब और नीरज की समझ के बाहर थी। तभी एक शब्द सुनाई पड़ा जिसे सुनते ही इंस्पेक्टर कदंब और नीरज की होश ही उड़ गए। नीरज तो लगभग बेहोश होते होते बचा।
क्रमशः....
Punam verma
28-Mar-2022 09:59 AM
बहुत खूबसूरत भाग
Reply
Seema Priyadarshini sahay
15-Mar-2022 05:28 PM
बहुत बेहतरीन भाग
Reply
Aalhadini
17-Mar-2022 12:14 AM
Thanks ma'am 🙏
Reply